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Cognizance of Offences by Magistrate

अध्याय 14 दण्ड प्रक्रिया संहिता

कार्यवाहियां शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्तें

Cognizance of Offences by Magistrates

धारा 190- मजिस्ट्रेटों द्वारा अपराधों का संज्ञान

(1) इस अध्याय के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और उपधारा (2) के अधीन विशेषतया सशक्त किया गया कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, किसी भी अपराध का संज्ञान निम्नलिखित दशाओं में कर सकता है:-

(क) उन तथ्यों का, जिनसे ऐसा अपराध बनता है, परिवाद प्राप्त होने पर;

(ख) ऐसे तथ्यों के बारे में पुलिस रिपोर्ट पर;

(ग) पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इस इत्तिला पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर कि ऐसा अपराध किया गया है।

(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराधों का, जिनकी जांच या विचारण करना उसकी क्षमता के अन्दर है, उपधारा (1) के अधीन संज्ञान करने के लिए सशक्त कर सकता है।

राज्य संशोधन

पंजाब, धारा 190 के बाद, निम्न धारा को अन्त: स्थापित करें-

"190क. कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा अपराधों का संज्ञान,-

 इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी विनिर्दिष्ट अपराध का संज्ञान निम्नलिखित दशाओं में कर सकता है-

(क) उन तथ्यों का, जिनसे ऐसा अपराध बनता है, परिवाद प्राप्त होने पर,

(ख) ऐसे तथ्यों के बारे में पुलिस रिपोर्ट पर,

(ग) पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इस सूचना पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर कि ऐसा अपराध किया गया है।"

191. अभियुक्त के आवेदन पर अन्तरण. जब मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान धारा 190 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन करता है तब अभियुक्त को, कोई साक्ष्य लेने से पहले, इत्तिला दी जाएगी कि वह मामले की किसी अन्य मजिस्ट्रेट से जांच या विचारण कराने का हकदार है और यदि अभियुक्त, या यदि एक से अधिक अभियुक्त हैं तो उनमें से कोई, संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष आगे कार्यवाही किए जाने पर आपत्ति करता है तो मामला उस अन्य मजिस्ट्रेट को अन्तरित कर दिया जाएगा जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाएगा।

राज्य संशोधन

पंजाब और चंडीगढ़ संघ राज्यक्षेत्र "धारा 190 की उपधारा (1) के खण्ड (ग)" शब्दों के लिए "धारा 190क" शब्द प्रतिस्थापित करें और "मजिस्ट्रेट" तथा "मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट" के लिए, जहां कहीं ये आते हैं, क्रमशः

"कार्यपालक मजिस्ट्रेट" और "जिला मजिस्ट्रेट" प्रतिस्थापित करें।

192. मामले मजिस्ट्रेटों के हवाले करना.- (1) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अपराध का संज्ञान करने के पश्चात् मामले को जांच या विचारण के लिए अपने अधीनस्थ किसी सक्षम मजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है।

(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, अपराध का संज्ञान करने के पश्चात् मामले को जांच या विचारण के लिए अपने अधीनस्थ किसी ऐसे सक्षम मजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, और तब ऐसा मजिस्ट्रेट जांच या विचारण कर सकता है।

राज्य संशोधन

पंजाब और चण्डीगढ़ संघ राज्य क्षेत्र. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट" "प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट" या "मजिस्ट्रेट" शब्दों के लिए, जहां कहीं ये आते हैं, क्रमशः "जिला मजिस्ट्रेट" और "कार्यपालक मजिस्ट्रेट" को प्रतिस्थापित करें

193. अपराधों का सेशन न्यायालयों द्वारा संज्ञान. इस संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय, कोई सेशन न्यायालय आरम्भिक अधिकारिता वाले न्यायालय के रूप में किसी अपराध का संज्ञान तब तक नहीं करेगा जब तक मामला इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा उसके सुपुर्द नहीं कर दिया गया है।

194. अपर और सहायक सेशन न्यायाधीशों को हवाले किए गए मामलों पर उनके द्वारा विचारण. - अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश ऐसे मामलों का विचारण करेगा जिन्हें विचारण के लिए उस खण्ड का सेशन न्यायाधीश साधारण या विशेष आदेश द्वारा उसके हवाले करता है या जिनका विचारण करने के लिए उच्च न्यायालय विशेष आदेश द्वारा उसे निदेश देता है।

1-1983 का पंजाब अधिनियम संख्या 22 (27.6.1983 से प्रभावी)।

2- 1983 का पंजाब अधिनियम संख्या 22 (27.6.1983 से प्रभावी) ।

3-1983 का पंजाब अधिनियम संख्या 22 (27.6.1983 से प्रभावी)।

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